इंदौर में हुए दिल्ली पब्लिक स्कूल की बस हादसे ने हम सब को देहल दिया, पर सवाल ये हे की कैसे सुनिश्चित हो की आगे से ये नहीं होगा?
- निवेदन हे इस पोस्ट को शेयर करें, और एक महत्वपूर्ण सुझाव को आवश्यक अथॉरिटी तक पहुँचाया जा सके....!
- होता क्या हे, की सुबह बस सीधी चालू की जाती हे और बच्चों को लेने चली जाती हे, वहा से आने के बाद क्लीनर उसमे झाड़ू लगा देता हे और दोबारा स्कूल छूटने पर बच्चों को घर छोड़कर स्कूल में गाडी खड़ी कर दी जाती हे। ये स्कूल गाड़ियों की वास्तविक प्रक्रिया हे, ड्राईवर सिर्फ डीजल चेक करता हे बाकी चीजों से कोई मतलब नहीं, और अक्सर ऐसे हादसे हो जाते हे, जो इस बात पर ख़त्म हो जाते हे की अब क्या कर सकते हे हम....! अब क्या कर सकते हे हम प्रश्न का जवाब कभी नहीं ढुंढा गया..! सरकार मुवाबजे देने का ऐलान कर देती हे और समय से साथ सब भूल जाते हे...! कुछ सुझाव हे इस "खाती समाज सेवा फाउंडेशन" संस्था के, अगर जिन पर अमल किया जाये तो हो सकता हे ऐसे हादसे ना हो।
- 1. स्कूल में बहुत सी बसें होती हे, किन्तु किसी भी बस का दैनिक फिटनेस टेस्ट नहीं किया जाता...! अगर ऐसी व्यवस्था हो की स्कूल बस का प्रातः बच्चों को लेने जाने से पहले फिटनेस टेस्ट होगा (कोई मेकेनिक गाडी के ब्रेक, स्टेरिंग, सुरक्षा सिस्टम, इंडीगेटर, लाइट, इंजन की बेसिक आदि) का परिक्षण करे जिस में सिर्फ 10 मिनट या कम एक गाडी के लिए लगते हे, तो vehicle fitness की संतुष्टी इंदौर जैसे हादसे को दोबारा कभी नहीं होने देगी, इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- 2. गाडी की गति 40 km/h (जो की इस से पहले हम ने 80 की भी देखि हे) सख्त नियम के साथ लागू की जानी चाहिए।
- 3. बस के केबिन में डिवाइडर होना चाहिए और आगे की और बच्चों का बैठना प्रतिबंधित किया जाना चाहिए (बहुत सी बसों में हम ने देखा हे, ड्राईवर के और उसके आसपास का क्षेत्र एक केबिन जैसा होता हे) अगर केबिन हुआ और उसमे बच्चों के बैठने पर रोक लगे तो, निश्चित ही दुर्घटना की स्तथि में जान के जोखिम कम होंगे (जितनी भी फ़ोटो हम से सोशल मीडिया पर देखि, बस में नोटिस करने वाली बात हे, केबिन चकना चूर हो गया, और बच्चे केबिन में अवश्य बैठे होंगे)
- 4. जहा स्कूल बस रुके, ठण्ड और कोहरे की स्तथि हो तो क्लीनर/ कंडक्टर बस के पीछे जाकर एक छड़ी सी होती हे जिसमे लाल लाइट होता हे, वो चालू करे, आम दिनों में बस के आसपास जब बच्चे उतार रहे तो उसे चालु कर इंडिकेशन दे, या इस ताराह का कुछ।
- 5. केबिन का वो हिस्सा जो बच्चों की और होगा, उसपर सॉफ्ट मटेरियल (गद्दा) हो, ताकि एक्सीडेंट की परिस्थिति में सर पे गंभीर चोट ना आये। 6
- . एक टीम हो, जो समय समय पर स्कूलों के वाहन की फिटनेस चेक कराती रहे। उपरोक्त सुझाओं में प्रथान सुझाव वाली प्रक्रिया पहले से चली आती तो स्टेरिंग फेल नहीं होती (जैसा की इस घटना के बारे में बताया जा रहा हे)। कोई भी दिक्कत वाहन में एक दम से नहीं होती, कुछ indignation जरूर मिलाता हे, उसे अनदेखा कर दिया जाए तो दुर्घटना का कारण बन जाता हे। आप अपने सुझाव कमेंट में डाले, ताकि जब ये पोस्ट किसी अथॉरिटी के संपर्क में आवे तो हो सकता हे आप का कमेंट स्वरुप सुझाव मददगार हो।
- कृपया इस पोस्ट को शेयर अवश्य करे।
No comments:
Post a Comment